इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना का खतरा बहुत बड़ा होकर सामने खड़ा हुआ है, लेकिन कुंभ में स्नान करने वालों के आंकड़े देखकर इससे डरने की आवश्यकता नहीं है। बीते 3 दिनों के स्नान में कुंभ प्रशासन ने लगभग एक करोड़ लोगों को स्नान करा दिया है। यह आंकड़ा बहुत आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ता रहता है, लेकिन जो मौके की स्थितियां हैं, वे इस बात की पुष्टि नहीं करती कि हरिद्वार में 1 दिन में 30-35 लाख और 3 दिन में एक करोड़ लोग आ सकते हैं


इस आंकड़े के गलत होने की वजह बहुत ही स्पष्ट हैं, जो कि अच्छा ही है। अब आंकड़ों की सच्चाई देखिये। आज दिन में 15-16 ट्रेन हरिद्वार पहुंची। (विगत तीन दिन का औसत यही है।) हर एक ट्रेन में औसत 3000 लोग आते हैं तो ट्रेनों द्वारा अधिकतम 50 हजार लोग ही आ सकते हैं। इसी तरह से प्रशासन ने 6 जगहों पर बड़ी पार्किंग की व्यवस्था की हुई थी, लेकिन किसी भी एक पार्किंग में शायद ही एक समय में 500 बसें पार्क होने की स्थिति हो। यदि इन सभी जगहों पर कुल मिलाकर 3000 बस एक वक्त में पार्क होना मान भी लें और यह भी मानें कि हर एक बस में औसत 60 लोग आए होंगे तो बसों के माध्यम से आने वाले यात्रियों की संख्या 1 लाख 80 हजार के आसपास होगी।
हरिद्वार में तीन मुख्य रास्तों से प्रवेश किया जा सकता है। एक, देहरादून-ऋषिकेश की तरफ से। दूसरा, नजीबाबाद-बिजनौर की तरफ से और तीसरा, रुड़की-दिल्ली (भगवानपुर-बहादराबाद सहित) की तरफ से। पहले भी इस बात को लेकर काफी सर्वे हुए हैं कि हरिद्वार में कारों की पार्किंग के लिए कितनी जगह उपलब्ध है। पूरा हरिद्वार मिला लें तो भी शहर में बाहर से आने वाली 50 हजार कारों को पार्क नहीं किया जा सकता। अब इस आंकड़े को भी ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेते हैं कि इन दिनों में करीब 50 हजार कारें रोजाना आई होंगी। एक कार में 5 लोगों का औसत मानें तो ढाई लाख लोग कारों के माध्यम से पहुंचे होंगे। अब इन तीनों आंकड़ों को मिला लीजिए तो लगभग 4 लाख 80 हजार लोग बैठते हैं।
इस बार प्रशासन के स्तर पर बाहरी लोगों की एंट्री को लेकर जितनी सख्ती थी, उसके सामने ये ऊपर वाले आंकड़े भी टिकाऊ नहीं दिखते। फिर भी, इसमें कुछ संख्या उन लोगों की मान सकते हैं जो आसपास की जगहों से दुपहिया वाहन से हरिद्वार पहुंचा होंगे। तो भी कुल संख्या 5 लाख नहीं पहुंच सकती। इस संख्या में वे स्थानीय लोग भी हैं जो अपने व्यक्तिगत कार्यो के कारण बाहर आते-जाते हैं और इन दिनों में अपने घर लौट कर आए हैं।
वैसे, 5 लाख का आंकड़ा भी काफी बड़ा है, लेकिन आप में से जो भी लोग विगत में हरिद्वार आए हों, उन सबको पता है कि पुल जटवाड़ा, ज्वालापुर से लेकर और हरिपुर कला, शांतिकुंज तक का करीब 20 किलोमीटर लंबा इलाका ऐसा है, जहां पांच-छह किलोमीटर लम्बाई के घाट बने हुए हैं। प्रशासन ने सारी भीड़ को इन सैकड़ों घाटों पर छितराया हुआ था। इसका परिणाम यह निकला कि किसी घाट पर कोई असामान्य भीड़ नहीं थी। इस वक्त आप लोगों ने हर की पौड़ी और उसके आसपास की जो फोटो देखी होंगी, वे शाही स्नान के वक्त की फोटो हैं, जिनमें साधु-सन्यासी और नागा स्नान कर रहे हैं। उस भीड़ को जरूर स्वीकार कर सकते हैं, जो हर की पौड़ी के आसपास के इलाके में सिमटी हुई है, लेकिन वह भीड़ भी ऐसी नहीं है जैसी कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन या कश्मीरी गेट आईएसबीटी के आसपास या कनॉट प्लेस के आसपास होती है। इसलिए मैं इस बात को मानने को तैयार नहीं हूं कि कुंभ के कारण हरिद्वार में कोरोना का विस्फोट हो गया है और न ही आपको इस बात से डरने की आवश्यकता है। वस्तुतः हवाई आंकड़े में भी एक राहत छिपी हुई है।
वैसे, यदि एक स्थान पर किसी एक दिन में 30-35 लाख लोग जुटे हों और 3 दिन में यह संख्या एक करोड़ तक पहुंच गई होगी तो फिर यकीनन बड़ा खतरा पैदा हुआ, पर ऐसा हुआ नहीं। न केवल कुम्भ में, बल्कि अन्य स्नानों के आंकड़े भी इसी तरह के हास्यास्पद होते हैं। ये आंकड़े साल दर साल 10 से लेकर 20 फीसद की दर से बढ़ते जाते हैं और आगे भी बढ़ते जाएंगे। इन्हीं हवाई आंकड़ों के जरिये अगले सालों के पर्वों व्यवस्था की प्लानिंग भी होती है।
कोरोना का असली खतरा देखना हो तो वह देहरादून में है। देहरादून में बीते 1 सप्ताह में 50,000 से भी कम लोगों की टेस्टिंग हुई है। चिंता की बात यह है कि इस सप्ताह में देहरादून में 4000 से ज्यादा नए कोरोना मामले सामने आए हैं। यानी वहां संक्रमण की दर 8 फीसद से ज्यादा है। हरिद्वार में बीते सप्ताह में लगभग डेढ़ लाख लोगों की टेस्टिंग हुई है, जो देहरादून की तुलना में 3 गुनी है, जबकि हरिद्वार में इस सप्ताह में कुल केसों की संख्या ढाई हजार से भी कम है। यहां संक्रमण की दर दो फीसद से भी कम है। (हालांकि इस विषय पर मेडिकल फील्ड के मित्र ज्यादा बेहतर टिप्पणी कर सकते हैं।)
यदि आंकड़े विश्वसनीय हैं तो फिर हरिद्वार की तुलना में देहरादून पर कोरोना का खतरा ज्यादा गहरा और बढ़ता हुआ भी दिख रहा है। इसलिए इन तमाम बातों के विरोधाभास को ठीक से देखने की आवश्यकता है और कुछ तथ्यों को सही संदर्भ में समझने की जरूरत भी है। तथ्य यही है कि कोरोना लगातार बढ़ रहा है और उसी अनुपात में लोगों के संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ रहा है, लेकिन यह खतरा कुंभ स्नान की वजह से बढ़ गया हो, ऐसा नहीं है। वस्तुतः कुंभ में जितने लोगों के आने का दावा किया गया, उनकी तुलना में शायद 15-20 फीसद लोग भी नहीं आए हैं।
वैसे, इस वक्त केवल हरिद्वार नहीं, बल्कि देहरादून पर अतिरिक्त रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। आज 14 अप्रैल को कुंभ का शाही स्नान समाप्त होने के बाद अब अगला शाही स्नान अप्रैल के आखिर में होना है। ऐसी स्थिति में कम से कम देहरादून और हरिद्वार में वैसे ही उपाय लागू किए जाने चाहिए, जैसे कि कल महाराष्ट्र में लागू किए गए हैं। अन्यथा की स्थिति में हालात को काबू करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा और अंत में इसका ठीकरा कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के सिर पर फूट जाएगा।
सुशील उपाध्याय

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