स्वामी प्रज्ञानंद गिरी महाराज जी द्वारा कहा गया कि की जो पीठ खाली ही ना हो उस पीठ पर किसी दूसरे को कैसे बिठाया जा सकता है, वह निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर हैं सभी अखाड़ों की उपस्थिति में उनका निरंजनी अखाड़े के आचार्य के पद पर महामंडलेश्वर के रूप में अभिषेक हुआ था आचार्य महामंडलेश्वर बनने के बाद धर्म प्रचार का कार्य करते रहे हैं मेरे पद पर रहते हुए किसी अन्य व्यक्ति के को बैठाना अखाड़ों की परंपराओं के विपरीत है
इससे संत समाज का अपमान होगा किसी कम शिक्षित तथा राजनीतिक व्यक्ति जिसका आचरण ठीक ना हो जिसका व्यवहार ठीक ना हो ऐसे व्यक्ति को निरंजनी अखाड़े की गद्दी पर बैठन ठीक नहीं होगा इसलिए मैं न्यायालय की शरण में जा रहा हूं