कोटद्वार : उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी।चंद्रशेखर करगती के ऊपर देहरादून ट्रायल कोर्ट में एसटी एक्ट का एक मुकदमा चल रहा है। जो कि चंद्र शेखर करगेती द्वारा समाज कल्याण विभाग के अधिकारी गीता राम नौटियाल के खिलाफ की गई शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था। समाज कल्याण अधिकारी गीता राम नौटियाल ने अपने ऊपर उस शिकायत में लगाए गए  लगाए गए आरोपों को लेकर , खुद को अनुसूचित जनजाति का बताते हुए चंद्रशेखर करगेती के खिलाफ एसटी एक्ट की धाराओं में दर्ज करवा दिया था।
दरअसल  चंद्रशेखर करगेती द्वारा समाज कल्याण विभाग में हो रहे कई सौ करोड़ के घोटाले का पर्दाफाश किया व इसी संबंध में एक जनहित याचिका संख्या 192 वर्ष 2015 में  समाज कल्याण विभाग में 600 करोड़ से ऊपर के  घोटाले को लेकर  दायर की है । इसमें शिकायतकर्ता के ऊपर भ्रष्टाचार के  गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं। वैसे तो गीता राम नौटियाल जाति  के ब्राह्मण  हैं मगर क्षेत्र विशेष के आरक्षण के तहत अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाए हैं। अतः ऐव उक्त जनहित याचिका में अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को दबाने के लिए चंद्र शेखर करगेती  द्वारा की गई शिकायत को आधार बनाते हुए  चंद्र शेखर करगेती को एसटी एक्ट की धाराओं में निरुद्ध कर चंद्रशेखर करगेती पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। 
मामले में नैनीताल हाई कोर्ट ने पाया कि  इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने पाया कि चुंकि शिकायतकर्ता अनुसूचित जनजाति का सदस्य है इसलिए ACT के  प्रोविजंस लागू होते हैं। निचली अदालत  ने यह भी माना कि evidences in the charge sheet are not available and further investigation is going on. ( चार्ज शीट में साक्ष्य मौजूद नहीं हैं और आगे जॉच चल रही है)। माननीय  हाई कोर्ट ने माना कि साक्ष्यों के लिए यदि कोई जॉच चल भी रही है तो भी ट्रायल कोर्ट द्वारा  जो एप्लीकेशन खारिज की गई है ,वो चार्ज शीट में मौजूद साक्ष्यों के आधार पर डिसाइड की जानी चाहिए थी न कि आने वाले समय में जॉच में आने वाले साक्ष्यों की प्रत्याशा में। 
माननीय हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता जो कि लोक सेवक है के खिलाफ ऐसी कौन सी झूठी शिकायत की गई थी और उस शिकायत से लोक सेवक को क्या हानि उठानी पड़ी इसके संबंध में भी कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। इसलिए समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए माननीय हाई कोर्ट ने  निचली अदालत के समक्ष चल रहे वाद को तब तक लंबित रखने के आदेश दिए जब तक कि इस अदालत में इस वाद का फैसला न हो जाय।

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